After Hours Academic

तू दौड़ दौड़, मैं भाग भाग

बड़ी दूर से चला था, जाने कहाँ पहुँच गया
मंज़िल भी तो पता नहीं, हर मोड़ पर बदल जाती है
आगे राहें अभी और भी है, न जाने कहाँ ये पहुंचाती है

साथ होते हुए भी सब कुछ, लगता है कुछ पीछे छूट गया है
नादान मन कहता है की मैं अभी कुछ जानता नहीं
जो छूट गया है पीछे उसे मैं अभी पूरी तरह पहचानता नहीं

डर लगता है की कहीं कभी उनसे ही रास्ते न टकरा जाए
जो राह दिखाते थे पहले पर अब साथ ही में चल रहे है
जिस साथ को निभाने क लिए कभी हम तो कभी वो, हर मोड़ पर रुक रहे है

राह में हमसफर तो और भी थे जो कदम से कदम मिला कर चलते थे
कुछ अब भी साथ हैं, कुछ के कदमों का साथ अब मुमकिन नहीं
उनकी नयी राहों से मिलेंगी कभी मेरी राहें, ये उम्मीद करना अब मुनासिब नहीं

शौक हुआ करते थे काफी जब सफर शुरू किया था
अब तो बस कुछ आदतें रह गयी है
और साथ ही उस शौकीन शुरुआत की चंद यादें रह गयी है

खुली आँखों से देखे थे जो सपने
कुछ पूरे हुए, कुछ अधूरे से रह गए
दिन में सपने अब भी आते है, नींद में सपने आये ज़माने बीत गए

रास्ते के कांटो से बचकर चलना सीखा था
किसे पता था हर नयी राह में नए कांटे ही पाउँगा
ज़िद्दी हूँ मई भी लेकिन, वक़्त क साथ इन्हे भी पहचान जाऊंगा

बड़ी दूर से चला था, जाने कहाँ पहुँच गया
मंज़िल भी तो पता नहीं, हर मोड़ पर बदल जाती है
आगे राहें अभी और भी है, न जाने कहाँ ये पहुंचाती है

#life #poem